भारतीय ज्योतिष के अनुसार कुंडली में 12 राशियाँ होती है | सूर्य और चंद्र को छोडकर अन्य ग्रह दो-दो राशियों के स्वामी हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह एक साथ केंद्र और त्रिकोण का स्वामी हो जाए तो उसे योगकारक ग्रह कहते हैं। योगकारक ग्रह उत्तम फल देते हैं और कुंडली की संभावना को भी बढाते हैं।
उदाहरण के लिए कुंभ लग्न की कुंडली में शुक्र चतुर्थ भाव और नवम भाव का स्वामी रहेगा। चतुर्थ भाव केंद्र स्थान होता है और नवम त्रिकोण स्थान होता है। अत: शुक्र कुंडली में एक साथ केंद्र और त्रिकोण का स्वामी होने से योगकारक ग्रह बन जाएगा। अत: ऐसी कुंडली में यदि शुक्र पर कोई नकारात्मक प्रभाव न हो तो वह शुभ फल ही देगा।
राजयोग
यह कुंडली का सबसे महत्वपूर्ण योग है। यदि किसी कुंडली के केंद्र का स्वामी किसी त्रिकोण के स्वामी से संबंध बनाता है तो उसे राजयोग कहते हैं। राजयोग शब्द का प्रयोग ज्योतिष में कई अन्य योगों के लिए भी किया जाता है। अत: केंद्र-त्रिकोण स्वामियों के संबंध को पाराशरीय राजयोग भी कहा जाता है। दो ग्रहों के बीच राजयोग के लिए ये संबंध देखे जाते हैं- युति, दृष्टि और परिवर्तन।
युति यानी दो ग्रह एक साथ एक भाव में हो। दृष्टि यानी एक ग्रह की किसी दूसरे ग्रह के देखना। परिवर्तन का मतलब है राशि परिवर्तन। उदाहरण के तौर पर सूर्य यदि चंद्र की राशि कर्क में हो और चंद्र सूर्य की राशि सिंह में हो तो इसे सूर्य और चंद्र के बीच परिवर्तन संबंध कहा जाएगा।
धनयोग
कुंडली में एक, दो, पांच, नौ और ग्यारहवां भाव धनप्रदायक भाव है। यदि इनके स्वामियों में युति, दृष्टि या परिवर्तन संबंध बनता है तो इस संबंध को धनयोग कहा जाता है।
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